January 15, 2025 3:03 pm

उत्तराखंड : नदियों में मशीनों से न किया जाए खनन…हाईकोर्ट ने सरकार सहित अन्य पक्षकारों से मांगा जवाब

देहरादून: हाईकोर्ट ने उत्तराखंड लघु खनिज (रियायत) नियमावली में संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने कहा कि इस संशोधन के तहत खनन की दी गई अनुमति में नदियों में खनन के लिए मशीनों का उपयोग न किया जाए। कोर्ट ने सरकार सहित अन्य पक्षकारों को चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।

कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए आठ जनवरी की तिथि नियत की है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनोज कुमार तिवारी व न्यायमूर्ति विवेक भारती शर्मा की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। सत्येंद्र सिंह चौहान ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि राज्य सरकार ने लेटर ऑफ इंटेंट धारकों को पिछले दरवाजे से प्रवेश दिया है जो ड्रेजिंग नीति की आड़ में खनन कार्य करने के लिए संबंधित एजेंसियों से अनुमति प्राप्त करने में असमर्थ है।

इन्हें ही मिले अनुमति
यह अनुमति तभी तक रहेगी जब तक संबंधित एजेंसियों से आवश्यक मंजूरी नहीं मिल जाती। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि उपनियम (9) का प्रयोग कर राज्य के भीतर सभी नदियों में खनन की अनुमति दी गई है, भले ही केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और अन्य संबंधित एजेंसियों द्वारा आवश्यक अनुमति न मिली हो। उन्होंने कहा कि इस तरह का खनन मशीनों का उपयोग करके किया जाता है जो खनन नीति और उत्तराखंड लघु खनिज (रियायत) नियम 2023 के प्रावधानों के तहत भी अनुमन्य नहीं है।

सरकारी अधिवक्ता के अनुसार इस प्रावधान के तहत केवल उसी व्यक्ति को खनन कार्य करने की अनुमति है, जिसे आशय पत्र जारी किया गया है,जो रॉयल्टी के रूप में देय राशि का दोगुना भुगतान करने के लिए तैयार है। उन्होंने स्पष्ट किया कि नदियों को चैनलाइज करने के लिए ड्रेजिंग की जाती है ताकि नदी अपना मार्ग न बदले।

यह भी कहा कि संशोधित प्रावधान यह सुनिश्चित करने के लिए है कि जिस व्यक्ति को आशयपत्र दिया गया है, उसे संबंधित एजेंसियों द्वारा खनन के लिए मंजूरी देने में देरी के कारण नुकसान न उठाना पड़े। यदि ड्रेजिंग नीति के तहत किसी अन्य व्यक्ति को आरबीएम निकालने की अनुमति दी जाती है तो यह उस व्यक्ति के साथ अन्याय होगा, जिसे उसी नदी से खनन के लिए पहले से ही आशयपत्र दिया गया है।