May 23, 2025 8:39 pm

फॉरेस्ट फायर से निपटने की तैयारी, DFO को फिल्ड में उतारा, PCCF अफसरों को जिलों का जिम्मा

रामनगर: उत्तराखंड में गर्मी के साथ ही जंगलों में आग लगने की घटनाएं भी सामने आने लगी हैं. इस चुनौती से निपटने के लिए राज्य का वन विभाग पूरी तरह अलर्ट मोड में आ चुका है. उत्तराखंड के चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन रंजन मिश्रा ने मीडिया को जानकारी देते हुए कहा कि जंगल की आग से निपटने के लिए एक व्यापक कार्य योजना तैयार की गई है. जिसे एसओपी (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) के रूप में सभी जिलों में लागू किया जा चुका है.

रंजन मिश्रा ने बताया कि केवल वन विभाग ही नहीं, इस अभियान में प्रदेश के विभिन्न विभागों को भी सक्रिय भागीदारी के लिए जोड़ा गया है. इन विभागों के संसाधनों और सुविधाओं का भी उपयोग किया जा रहा है. ताकि किसी भी आपात स्थिति में समय रहते आग पर काबू पाया जा सके.

स्थानीय स्तर पर जागरूकता और भागीदारी

वनाग्नि से निपटने के लिए ग्रामीण और स्थानीय लोगों की भागीदारी को भी अहम माना गया है. गांव-गांव में जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं. ताकि लोग जंगल में आग लगने के कारणों और उसके दुष्परिणामों से अवगत हो सकें. इन अभियानों के तहत बताया जा रहा है कि किस तरह छोटी-छोटी लापरवाहियां बड़े नुकसान का कारण बन सकती हैं.

डीएफओ और कंजरवेटर को विशेष निर्देश

मिश्रा ने बताया कि सभी डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर (DFO) और कंजरवेटर को स्वतंत्र रूप से क्षेत्र में सतर्क रहने और फील्ड में जाकर हालात का मूल्यांकन करने के निर्देश दिए गए हैं. रोजाना आने वाले फायर अलर्ट्स का तुरंत असरदार समाधान करने को कहा गया है. ताकि आग फैलने से पहले ही उसे काबू में किया जा सके.

पीसीसीएफ स्तर पर जिला-जिला निगरानी

इस बार विशेष रणनीति के तहत प्रमुख मुख्य वन संरक्षक (PCCF) स्तर के अधिकारियों को अलग-अलग जिलों की जिम्मेदारी दी गई है. इन अधिकारियों को अपने-अपने जिले में जाकर फायर फाइटिंग इक्विपमेंट, बजट की स्थिति, संसाधनों की उपलब्धता, वायरलेस सिस्टम की कार्यप्रणाली, फ्यूल स्टोरेज से लेकर फायर वाचर की तैनाती तक का जायजा लेने का काम सौंपा गया है.

पानी और तकनीक से फायर कंट्रोल की तैयारी

जंगलों में आग बुझाने के लिए बड़े वाहनों में पानी की व्यवस्था से लेकर रिमोट एरिया में तकनीकी सहायता पहुंचाने की रूपरेखा भी बनाई गई है. विभाग इस बार किसी भी तरह की लापरवाही नहीं बरतना चाहता और हर स्तर पर चौकसी बरती जा रही है.

पिरूल प्रबंधन से जुड़ेगा रोजगार का नया मॉडल

रंजन मिश्रा ने बताया कि उत्तराखंड में जंगल की आग का सबसे बड़ा कारण पिरूल (चीड़ की सूखी पत्तियां) है. इस बार वन विभाग ने तय किया है कि पिरूल को जंगल से हटाकर उससे प्रोडक्ट तैयार किए जाएंगे. जैसे ब्रिकेट्स. जो ईंधन के रूप में उपयोग हो सकते हैं.

इसके लिए ग्रामीणों को प्रोत्साहित किया जा रहा है कि वे पिरूल को इकट्ठा करें. राज्य सरकार ने इसके लिए 10 रुपये प्रति किलो की दर तय की है. जो सीधे ग्रामीणों के बैंक खातों में ट्रांसफर किया जा रहा है. इससे एक ओर जंगल की आग पर नियंत्रण मिलेगा और दूसरी ओर ग्रामीणों को रोजगार का अवसर भी मिलेगा. इस समन्वित प्रयास से न सिर्फ उत्तराखंड के जंगलों को आग से बचाया जा सकेगा. बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी एक नया सहारा मिलेगा.