देहरादून: भारतीय वन सेवा के अफसर धनंजय मोहन के स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) लेते ही कई सवाल खड़े होने लगे. सवाल ये कि धनंजय मोहन अपनी सेवानिवृत्ति से 2 महीने पहले क्यों वीआरएस लेकर सिस्टम से बाहर हो गए. हालांकि राज्य के लिए यह कोई नई बात नहीं है, क्योंकि प्रदेश में ऑल इंडिया सर्विस के कई अधिकारी इससे पहले भी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेते रहे हैं.
इन अफसरों ने ली स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति: राज्य में पिछले कुछ सालों में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने वालों की लंबी फेहरिस्त रही है. हालांकि प्रत्येक अधिकारी का वीआरएस लेने के पीछे कारण भी अपना अलग-अलग रखता है. जिन अधिकारियों ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली, उनमें पहला नाम तत्कालीन प्रमुख सचिव उमाकांत पंवार का है. जोकि सीनियर आईएएस अफसर रहते हुए करीब 8 से 10 साल की सेवा मौजूद होने के बावजूद स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर सिस्टम से बाहर हो गए. उमाकांत पंवार 1991 बैच के अधिकारी थे.
राकेश कुमार ने भी लिया वीआरएस: इसी में दूसरा नाम उनकी पत्नी मनीषा पंवार का है, जिन्होंने सीनियर IAS रहते हुए वीआरएस लिया. हालांकि उनके वीआरएस लेने के पीछे स्पष्ट तौर पर स्वास्थ्य कारण थे. मनीषा पंवार 1990 बैच की IAS अफसर रही हैं. इस सूची में राकेश कुमार का नाम भी शामिल है जो पहले राज्य में कई अहम जिलों के जिलाधिकारी रहे और फिर शासन में भी बतौर सीनियर IAS कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभाली. हालांकि इसके बाद उन्होंने वीआरएस ले लिया. राकेश कुमार 1992 बैच के आईएएस अधिकारी थे.
स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ने हैरान कर दिया: इसी सूची में IAS अफसर भूपेंद्र कौर औलख भी रही, जिन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर सभी को हैरान कर दिया. हालांकि उन्होंने खुद के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन में काम करने को बेहतर विकल्प समझा और इसी विकल्प के आधार पर उन्होंने देश की सबसे प्रतिष्ठित सेवा को त्याग दिया. भूपेंद्र कौर औलख 1997 बैच की IAS अफसर रही हैं.
सरकार ने नहीं लिया कोई निर्णय: स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन करने वालों में IAS अफसर बीवीआरसी पुरुषोत्तम का नाम भी शामिल है. उनकी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन की खबर ने सभी को चौंका दिया था. हालांकि अब तक भी करीब 2 महीने बीत जाने के बाद इस पर सरकार ने कोई निर्णय नहीं लिया है. बीवीआरसी पुरुषोत्तम 2004 बैच के आईएएस अधिकारी हैं और अभी उनकी सेवानिवृत्ति में करीब 8 साल से ज्यादा का वक्त बचा हुआ है.
IPS असीम श्रीवास्तव ने भी छोड़ा पद: ऑल इंडिया सर्विस में केवल IAS अफसर ही नहीं बल्कि IPS और IFS अधिकारी भी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेते रहे हैं. IPS असीम श्रीवास्तव ने भी इसी तरह शैक्षिक सेवानिवृत्ति ली थी. असीम श्रीवास्तव उत्तराखंड राजभवन में एडीसी के पद पर तैनात थे. असीम 1998 में उत्तर प्रदेश राज्य पुलिस सेवा में शामिल हुए थे. इसके बाद उन्होंने उत्तराखंड में कई जिलों की कमान भी संभाली थी.
रचिता जुयाल ने सबको चौंकाया: हाल ही में आईपीएस अधिकारी रचिता जुयाल ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन करके सभी को चौंका दिया था. रचिता जुयाल को अभी IPS के तौर पर काम करते हुए ज्यादा समय नहीं हुआ है. साल 2015 बैच की आईपीएस अधिकारी को अभी केवल सेवा में आए 9 साल ही हुए हैं. फिलहाल वह विजिलेंस में तैनात हैं. पिछले दिनों उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन किया था जिसे अभी मंजूर नहीं किया गया है. IFS अधिकारी भी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के मामले में पीछे नहीं है. हाल ही में प्रमुख वन संरक्षक धनंजय मोहन ने VRS लिया था. यह स्थिति तब है जब उनकी सेवानिवृत्ति के लिए केवल 2 महीने का ही वक्त बचा हुआ था लेकिन सभी को चौंकाते हुए उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली. धनंजय मोहन 1988 बैच के IFS अधिकारी रहे हैं.
स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के पीछे अधिकारियों की अपनी अलग वजह हो सकती है और इसमें बेहतर विकल्प मिलने से लेकर राजनीतिक दबाव और काम का दबाव न झेल पाना भी कारण हो सकता है.
जय राज, रिटायर्ड IFS अफसर
मनोज चंद्रन का भी नौकरी से मोह भंग: भारतीय वन सेवा के अधिकारी मनोज चंद्रन भी इसी सूची में शामिल है. जिन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन किया हुआ है. हालांकि अभी उनकी जांच चल रही है और इसलिए फिलहाल अब तक उनके इस आवेदन पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है. बड़ी बात यह है कि मनोज चंद्रन VRS का आवेदन करने के बाद से ही सेवा नहीं दे रहे हैं, जबकि अभी शासन की तरफ से इस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है. मनोज चंद्रन 1999 बैच के अधिकारी हैं.
प्रदेश में जिस तरह से युवा अधिकारी भी VRS ले रहे हैं, उससे लगता है कि देश की प्रतिष्ठित सेवा की जगह युवा प्राइवेट सेक्टर की तरफ ज्यादा रुझान दिखा रहा है. कई मामलों में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के मामले राज्य के लिए काफी गंभीर भी हैं.
भगीरथ शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार
देश की प्रतिष्ठित सेवा से अफसरों का मोह भंग होने का ये मामला विचारणीय है. हालांकि बेहतर विकल्प के कारण जो अफसर इस सेवा से खुद को अलग कर रहे हैं, उसे सामान्य माना जाना चाहिए. लेकिन काम के दबाव में या राजनीतिक दबाव से यदि ऐसे फैसले हो रहे हैं तो उसे जानकार गंभीर बताते हैं.